भारत में बिजली के गंभीर संकट की आहट; चीन-यूरोप में बिजली तो ब्रिटेन में नहीं मिल रहा पेट्रोल-डीजल, आखिर इन सबकी वजह क्या है?
भारत में बिजली कंपनियां कोयले की कम आपूर्ति से परेशान हैं। उद्योगों से बिजली की मांग बढ़ी है, लेकिन दुनियाभर में कोयले की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसकी वजह आयात घटना है। यूरोप में भी सर्दियां आने से पहले ही बिजली के दाम बढ़ने लगे हैं। चीन ने देश की बिजली जरूरत को पूरा करने के लिए बिजली कंपनियों के प्रोडक्शन बढ़ाने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही चीन में बिजली के इस्तेमाल पर पाबंदियां लगाई गई हैं।
वहीं दूसरी ओर ब्रिटेन में पेट्रोलियम पदार्थों की कमी के कारण लोग परेशान हैं। यहां के 90% पेट्रोल पंप ड्राई हो गए हैं। भारत में भी पेट्रोल-डीजल और गैस के दाम में लगातार इजाफा हो रहा है। दुनियाभर में तेल, प्राकृतिक गैस और कोयले के दाम बढ़ रहे हैं।
आखिर दुनियाभर में अचानक बिजली और तेल की कमी क्यों हो गई है? किस देश में इस वक्त कैसे हालात हैं? इसके पीछे क्या कारण हैं? आइए समझते हैं…
कोयले की कमी बढ़ा सकती है बिजली का संकट
भारत में कोयले की कमी के कारण आने वाले दिनों में बिजली का संकट खड़ा हो सकता है। देश के पावर सेक्टर में कोयला आधारित पावर प्लांट्स की हिस्सेदारी 70% है। रॉयटर्स के मुताबिक 29 सितंबर को देश के 135 कोयला आधारित पावर प्लांट्स में से 16 में कोयले का स्टॉक खत्म हो चुका था। आधे से ज्यादा प्लांट में 3 दिन से कम का स्टॉक बचा था, वहीं 80% प्लांटों में एक हफ्ते से कम का स्टॉक रह गया था।
कोयले की इस कमी की वजह क्या है?
कोरोना की दूसरी लहर के बाद देश के इंडस्ट्रियल सेक्टर में बिजली की डिमांड बढ़ी है। इंटरनेशनल मार्केट में कोयले की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर हैं। जबकि देश में कीमतें काफी कम हैं। इस अंतर की वजह से इम्पोर्ट की मुश्किलें बढ़ी हैं। देश में कोयला उत्पादन में 80% हिस्सेदारी रखने वाली कोल इंडिया का कहना है कि ग्लोबल कोल प्राइज में हो रहे इजाफे की वजह से हमें घरेलू कोयला उत्पादन पर निर्भर होना पड़ा है। डिमांड और सप्लाई में आए अंतर की वजह से ये स्थिति आई है।
भारत में बढ़ती पेट्रोलियम की कीमतों की वजह क्या है?
भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। IOC के मुताबिक दिल्ली में पेट्रोल 101.89 रुपए लीटर तो डीजल 90.17 रुपए लीटर है। मुंबई में पेट्रोल 107.95 और डीजल 97.84 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गया है। तेल कंपनियों का कहना है कि इसकी वजह तीन सप्ताह से लगातार बढ़ रहीं कच्चे तेल की कीमतें हैं।
ओपेक देशों का मानना है कि 2022 में कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच सकती हैं। यानी, फिलहाल पेट्रोल और डीजल के दाम कम होने के आसार नहीं हैं।
चीन में कैसा संकट है?
बीजिंग की कोयला खदानों में इस वक्त सेफ्टी चेक चल रहे हैं। इस वजह से यहां की खदानों का आउटपुट घट गया है। कोयले की कमी के चलते बिजली का उत्पादन घटा है। इससे बीजिंग की जिन कंपनियों में बिजली के बिना काम नहीं चल सकता वहां भी बिजली की राशनिंग शुरू कर दी गई है।
कोयले के कम प्रोडक्शन की वजह से लोकल थर्मल कोल की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। यहां तक कि पिछले साल के मुकाबले इसकी कीमतों में रिकॉर्ड 80% तक का इजाफा हुआ है।
बीजिंग से ही बिजली के दाम तय होते हैं। थर्मल कोयले की आसमान छूती कीमतों की वजह से कई बिजली संयंत्र बंद करने पड़े हैं। इस वजह से यहां बिजली संकट खड़ा हुआ है।
यह संकट कब तक खत्म होने की उम्मीद है?
गोल्डमैन सैक्स का अनुमान कहता है कि इस संकट का करीब 44% चीनी कंपनियों पर असर पड़ा है। चाइना इलेक्ट्रिसिटी काउंसिल ने हाल ही में कहा है कि कोयले से चलने वाली बिजली कंपनियां किसी भी कीमत पर अपने खरीद चैनल का विस्तार करना चाह रही हैं। जिससे सर्दियों में आने वाली बिजली की डिमांड को पूरा किया जा सके, लेकिन कोल ट्रेडर्स ने कहा है कि इसके लिए नए सिरे से इम्पोर्ट सोर्स के बारे में सोचना ज्यादा बेहतर विकल्प हो सकता है। क्योंकि, रूस यूरोप की बिजली जरूरत को पूरा करने पर ध्यान दे रहा है। बारिश की वजह से इंडोनेशिया से होने वाले उत्पादन पर असर पड़ा है। वहीं, मंगोलिया से होने वाले इम्पोर्ट पर भी ट्रकिंग की वजह से बाधा पड़ती है।
यूरोपीय देशों में बिजली का संकट
यूरोपियन यूनियन (EU) के देशों में पिछले कुछ हफ्तों में बिजली बिलों में भारी इजाफा देखा जा रहा है। स्पेन में तो दरें तीन गुना तक बढ़ गई हैं। बिजली दरों में इजाफे से यूरोप में आने वाली सर्दियां काफी कठिन हो सकती हैं। क्योंकि सर्दियों में बिजली की डिमांड सबसे ज्यादा होती है। लोगों को घर गर्म रखने के लिए बिजली की जरूरत पड़ती है।
यूरोप के बिजली संकट की वजह क्या है?
यूरोप में इस बिजली संकट के पीछे कई स्थानीय कारण हैं। इसमें प्राकृतिक गैस भंडारों और विदेशी शिपमेंट में कमी, साथ ही रीजन के सोलर फॉर्म्स और विंडमिल्स का आउटपुट घटा है। न्यूक्लियर जनरेटर और दूसरे प्लांट्स भी मेंटेनेंस वर्क के लिए ऑफलाइन कर दिए गए हैं।
आने वाले महीनों में डिमांड बढ़ने वाली है, लेकिन उम्मीद है कि आने वाले दिनों में चीजें आसान होंगी, क्योंकि जल्द ही मेंटेनेंस के लिए ऑफलाइन किए गए प्लांट शुरू हो जाएंगे। इसके साथ ही रूस से जर्मनी के बीच पूरी हुई नॉर्ड स्ट्रीम -2 गैस पाइपलाइन भी शुरू हो जाएगी।
हालांकि, इस संकट के दौर में स्पेन, इटली, ग्रीस, ब्रिटेन समेत तमाम यूरोपीय देश अलग-अलग तरह के उपाय कर रहे हैं। इसमें सब्सिडी देने से लेकर कीमतों पर एक अपर कैप लगाने तक के उपाय शामिल हैं। जिससे लोगों की परेशानियों को कुछ कम किया जा सके।
ब्रिटेन में 90% पेट्रोल पंप पर खत्म हुआ तेल
ब्रिटेन में पिछले कुछ दिनों ने पेट्रोल की कमी की खबरें आ रही थीं। इन खबरों के बीच वहां के लोगों ने पैनिक-बाइंग शुरू कर दी। नतीजा ये हुआ कि देश के 90% पेट्रोल पंपों पर ‘तेल खत्म है’ का बोर्ड लगाना पड़ा। पेट्रोल पंपों पर मारामारी की स्थिति बन गई। सरकार को लोगों से धैर्य रखने की अपील करनी पड़ी।
सच्चाई ये है कि ब्रिटेन में पेट्रोलियम पदार्थों की कमी समस्या नहीं है। इसकी वजह ट्रक वालों की कमी है। जो पेट्रोलियम पदार्थों को रिफाइनरी से रिटेलर तक ले जाते हैं। ये कमी ब्रिटेन के EU से निकलने का एक साइड इफेक्ट है। कोरोना की वजह से ट्रक वालों के सर्टिफिकेशन और ट्रेनिंग को स्थगित करने की वजह से ऐसे हालात पैदा हुए।
समस्या से निपटने के लिए ब्रिटेन सरकार क्या कर रही है?
प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की सरकार ने हजारों विदेशी ट्रक ड्राइवरों को अस्थाई वीजा जारी किया है। जिससे बाजार तक तेल पहुंचाया जा सके। इसके साथ ही आर्मी को भी मदद के लिए स्टैंडबाई मोड पर रखा गया है। सरकार को उम्मीद है कि जल्द पेट्रोल पंपों तक तेल पहुंचाने की प्रक्रिया सुचारू हो जाएगी।